सांची विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस संपन्न, 50 से ज्यादा शोध पत्र प्रस्तुत एएसआई ने किया देश की 1300 बौद्ध साइटों का डिजीटलीकरण

रायसेन, 27 नवम्बर 2019
'बौद्ध दर्शन के प्रारंभिक काल का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अध्ययन' पर गहराई से विचार के साथ सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कॉनफ्रेंस का समापन हो गया। समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि जड़ हो चुके विचारों को भारतीय समाज ने कभी भी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि बुद्ध काल से ही भारतीय समाज निरंतर अत्याचार का विरोधी रहा है और महात्मा बुद्ध भारत के पहले सांस्कृतिक विद्रोही हैं जिन्होंने वर्ण व्यवस्था का विरोध करते हुए यज्ञ को हिंसा प्रधान बताया था। उन्होंने  कहा कि अगर कोई चिंतन समाज को उठाने में कारगर नहीं हो पा रहा है तो वह चिंतन बेकार है।
प्रो. विजय बहादुर सिंह का कहना था कि लोगों का बुद्ध-बुद्ध, महावीर-महावीर, गांधी-गांधी करने से कुछ हासिल नहीं होगा बल्कि इस पक ध्यान केंद्रित करना होगा कि वो कौन सी परिस्थितियां थीं जिनके कारण इन लोगों का नाम इतिहास में दर्ज हुआ। देश के 1-2 प्रतिशत लोगों के पास भारत की 99 प्रतिशत आबादी के पास उपलब्ध धन से अधिक धन होने के विषय में चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि बुद्ध और महावीर का चिंतन त्याग का चिंतन था जबकि इन 1-2 प्रतिशत लोगों को धन-संपदा की भूख है।
इस राष्ट्रीय कॉन्फ्रेस के दूसरे एवं अंतिम दिन अकादमिक बुद्धिजीवियों ने केंद्रीय विषय से जुड़े विभिन्न विषयों पर अपने-अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। आंध्र प्रदेश के सांस्कृतिक केंद्र के सी.ई.ओ डॉ. ई शिवानागी रेड्डी ने आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक  में बौद्ध धर्म के प्रभाव पर बताया कि सैकड़ों ऐसे स्थल हैं जहां पर बौद्ध मठ, स्तूप और मंदिर स्थापित थे। दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज के सहप्राध्यापक डॉ माया जोशी ने हिंदी साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन के बारे में कई रोचक जानकारियां अपनी शोध में प्रस्तुत कीं। उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में जन्मे राहुल सांकृत्यायन 36 भाषाओं के ज्ञाता थे। वेद, ईश्वर और आर्य समाज से मोह भंग हो जाने के बाद वे बौद्ध दर्शन के अध्ययन में लग गए थे। वे पाली पढ़ने श्रीलंका गए, 4 बार तिब्बत की यात्रा की, विश्वविद्यालय में बौद्ध दर्शन पढ़ाने के लिए 2 साल रूस में रहे, ईरान की यात्रा की।
            भारतीय पुरातात्विक विभाग के पूर्व सह-निदेशक डॉ. टी दयालम ने अपनी प्रस्तुती में बताया कि देश की 1300 से अधिक ऐसे स्थलों का डिजीटलीकरण किया जा चुका है। संगोष्ठी के संयोजक डॉ मुकेश कुमार वर्मा ने कॉन्फ्रेंस की गतिविधियों की जानकारी देते हुए बताया कि इस कॉन्फ्रेंस में दो दिनों में 6 सत्रों में 12 मुख्य शोध पत्र पेश किए गए। अपने तरह की अनूठी कॉन्फ्रेंस में वक्ताओं को बोलने एवं सवालों के लिए पर्याप्त समय दिया गया। दोनों दिन अकादमिक सत्रों में करीब 40 शोध पत्र पेश किए गए। समापन  समारोह में विवि के सह प्राध्यापक नवीन कुमार मेहता ने धन्यवाद ज्ञापित किया। 


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